आज से छठ पूजा का महापर्व शुरू, जानिए नहाए-खाए से लेकर सूर्य अर्घ्य तक पूरी जानकारी।
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जय छठी मैया
छठ पूजा की महिमा।
छठ पूजा का महापर्व 4 दिनों का होता है। छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से शुरू हो जाती है। इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन घर में जो भी छठ का व्रत करने का संकल्प लेता है वह, स्नान करके साफ और नए वस्त्र धारण करता है। फिर व्रती शाकाहारी सात्विक भोजन लेते हैं। आम तौर पर इस दिन कद्दू की सब्जी बनाई जाती है।
छठ पूर्व में सूर्य की आराधना का बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता हैं। कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति तथा संपन्नता प्रदान करती हैं। छठ पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है।
नहाय खाय से शुरुआत
इस दिन व्रती महिलाएं नहाने के बाद नए कपड़े पहन कर सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद सात्विक (शाकाहारी) खाना खाती है। कुछ जगहों पर इस दिन कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। इस दिन व्रत से पूर्व नहाने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करना ही नहाय-खाय कहलाता है।
खरना
नहाय खाय के अगले दिन खरना होता है। इस दिन से सभी लोग उपवास करना शुरू करते हैं। इस दिन छठी माई के प्रसाद के लिए चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है। साथ ही फल, सब्जियों से पूजा की जाती है। इस दिन गुड़ की खीर भी बनाई जाती है।
खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। खरना के दिन ही भोग के लिए ठेकुआ और अन्य चीजे बनाई जाती है।
खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें गुड़ और चावल का खीर बनाया जाता है, साथ ही पूड़ियां, खजूर, ठेकुआ आदि बनाया जाता है। पूजा के लिए मौसमी फल और कुछ सब्जियों का भी प्रयोग होता है। व्रत रखने वाला व्यक्ति इस प्रसाद को छठी मैया को अर्पित करता है। खरना के दिन प्रसाद ग्रहण कर वह व्रत प्रारंभ करता है। छठ पूजा का प्रसाद बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि चूल्हे में आग के लिए केवल आम की लकड़ियों का ही प्रयोग हो।
डूबते सूर्य को दिया जाता है अर्घ
हिंदू धर्म में यह पहला ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्य वाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
सुबह के अर्घ्य के साथ समापन
चौथे दिन सुबह के अर्घ्य के साथ छठ का समापन हो जाता है। सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है और इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है।
छठ व्रत से मिलता है फल
छठी पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं।
छठ पूजा करने से सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।
परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है।
छठी मैया की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
छठ पूजा का इतिहास
पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिवार के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए नियमित तौर पर सूर्य पूजा किया करतीं थीं।
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, जब पांडव अपना सारा राज-पाठ कौरवों से जुए में हार गए, तब दौपदी ने छठ व्रत किया था। इस व्रत से पांडवों को उनका पूरा राजपाठ वापस मिल गया था। और सूर्य देव के आशीर्वाद से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुई ।
छठ व्रत करने से परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।
धन्यवाद।
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